मेरे बड़े --

Monday, August 4, 2014

मेरा उपहार बहुत प्यारा - सच्ची!! , आपको मेरी खूब सारी पुच्ची !!!

आज नानी के मार्फत एक उपहार मिला ,गिरिजा नानीजी को ढेर सारी प्यारी सी पुच्ची!!! -

"अर्चना जी मैंने अपनी पोती के लिये जब वह तीन माह की थी यह कविता लिखी थी । अब यह मायरा के लिये "
---- गिरिजा कुलश्रेष्ठ

नाजुक चंचल है
नन्ही कोंपल है
पत्तों पर शबनम सी निर्मल
झिलमिल-झिलमिल है
फुलबगिया सी मेरी गुडिया
कोमल--कोमल है
रेशम सी गभुआरी अलकें
पलकें हैं पंखुडियाँ
कोई आहट सुनती है तो
झँपकाती है अँखियाँ ।
विहगों के कलरव जैसी वह
हँसती खिलखिल है ।फुलबगिया सी ...
किलक-किलक कर पाँव चलाती
चप्पू दोनों हाथ चलाती
पंखुडियों से होंठ खोल कर
आ.आ..ऊँ..ऊँ..ऊँ बतियाती ।
नदिया की धारा बहती ज्यों
कलकल कुलकुल है ।फुलबगिया सी...
नन्हे नाजुक हाथ
हथेली नरम नवेले पत्ते
शहतूती सी हैं अँगुलियाँ
गाल शहद के छत्ते ।
फूलों की टहनी पर जैसे
चहके बुलबुल है । फुलबगिया सी ...

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर लाड दुलारी प्यारी प्रस्तुति ...

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बस! आपका आशीष बना रहे ...