नानी -गिरिजा दी का भेजा गिफ़्ट तुम्हारे लिए मायरा...
-मायरा - आहा !!
-मायरा - आहा !!
-नाजुक चंचल है
नन्ही कोंपल है
पत्तों पर शबनम सी निर्मल
झिलमिल-झिलमिल है
फुलबगिया सी मेरी गुडिया
कोमल--कोमल है
रेशम सी गभुआरी अलकें
पलकें हैं पंखुडियाँ
कोई आहट सुनती है तो
झँपकाती है अँखियाँ ।
विहगों के कलरव जैसी वह
हँसती खिलखिल है ।फुलबगिया सी ...
किलक-किलक कर पाँव चलाती
चप्पू दोनों हाथ चलाती
पंखुडियों से होंठ खोल कर
आ.आ..ऊँ..ऊँ..ऊँ बतियाती ।
नदिया की धारा बहती ज्यों
कलकल कुलकुल है ।फुलबगिया सी...
नन्हे नाजुक हाथ
हथेली नरम नवेले पत्ते
शहतूती सी हैं अँगुलियाँ
गाल शहद के छत्ते ।
फूलों की टहनी पर जैसे
चहके बुलबुल है । फुलबगिया सी ...
धत्त तेले की, मायला का गिफ्ट देखना तो भूल ही गए थे नानू!!!
ReplyDeleteशब्द नहीं है, गिरिजा जी की कविता की खूबसूरती बयान करने को...!