मैं गिरती,पड़ती,फिर चल पड़ती
नहीं कभी रुकने वाली
नए नए प्रतिमान रचूंगी,
नहीं कभी झुकने वाली
नन्ही हूँ ,अभी जरा सी,
ठुमक-ठुमक चलती हूँ
काम बड़ों के जैसे करती
प्रकृति में ही पलती हूँ
मिले अगर आशीष तुम्हारा
सरपट दौड़ लगा लूँगी
अपनी ये मुस्कान दिखा कर
ढेरों खुशियाँ बाटूँगी........
-मायरा (आज की राहगीरी,8/3/2015)
हैप्पी वुमंस डे.... टू नानी
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बस! आपका आशीष बना रहे ...